BRIEF KNOWLEDGE OF UTTARAKHAND VAN AANDOLAN

 उत्तराखंड में हुए प्रमुख वन आंदोलन संछिप्त में 



मैती आंदोलन 


 मैती शब्द का अर्थ मायका  होता है।  इस अनूठे आंदोलन सा जनक कल्याण सिंह रावत के मन में 1996 में उपजा मस विचार इतना विस्तार पा लेगा इसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं  की थी। ग्वालदम
इण्टर  कॉलेज की छात्राओ  को वनो के प्रति देखभाली करते हुए देखके रावत जी ने महसूर किया की पर्यावराण संरक्षण में युवतियां बेहतर ढंग से काम कर सकती हैं. इसके बाद ही मैती आंदोलन ने आकार लेना शुरू किया.
इस आंदोलन के तहत आज वर वधु द्वारा विवाह समारोह के दौरान पौधा रोपने और इसके बाद मायके पक्ष इसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंप देने की परंपरा है।
गाँव की सारी  युवतियां मिलकर मैती आंदोलन के लिए एक अध्यक्ष चुनती हैं जिसे दीदी का दर्जा दिया जाता है.


रक्षासूत्र आंदोलन 


वृक्ष पर रक्षासूत्र बांधकर उसकी रक्षा का संकल्प लेने सम्बन्धी ये आंदोलन 1994 में टिहरी के भिलंगना क्षेत्र से शुरू हुआ था। इस आंदोलन का कारण  ऊँचे स्थान पर वृक्षों के काटने पर लगे प्रतिबन्ध के हटने पर ये आंदोलन शुरू हुआ और लोगो ने काटने वाले चिन्हित वृक्षों पर राक्षसूत्र बांधकर उसे बचने का संकल्प लिया।
इस के कारण आज भी रयाला जंगल के वृक्ष चिन्हित के बाद भी सुरक्षित हैं.
इस आंदोलन का नारा था -" ऊँचाई पर पेड़ रहेंगे, नदी ग्लेश्यिर टिके  रहेंगे , जंगल बचेगा देश बचेगा "


पाणी राखो आंदोलन 


उफरैखाल गाँव के युवाओ द्वारा पानी की कमी को दूर करने के लिए ये आंदोलन काफी सफल रहा।  इस आंदोलन के सूत्रधार गाँव के शिक्षक सच्चिदानंद भारती  ने दूधतौली लोक विकास संस्थान का गठन क्र इस कशेरा में जनजागरण और सरकारी अधिकारियो ु दवाब बनाकर वनो की अंधाधुंध कटाई को रुकवाया। 


रवाई आंदोलन


 टिहरी राज्य में राजा नरेन्द्रशाह के समय एक नया वन क़ानून आया जिसके तहत ये व्यवस्था थी की किसानो की भूमि को भी वन भूमि में शामिल किया गया है।  इस कानून के खिलाफ 30  मई1930  को दीवान चक्रधर जुयाल के आज्ञा से सेना ने आंदोलनकारियों पर गोली चला दी  जिससे सेंकडो किसान शहीद हो गये थे।  आज भी इस क्षेत्र में ३० मई को शहीद दिवस मनाया जाता हैं. 


चिपको आंदोलन 


 वनो की अंधाधुंध कटाई रोकने के लिए 1974  में चमकी ज़िले में गोपेश्वर नामक स्थान पर एक 23  वर्षीय विधवा महिला  गौरा देवी द्वारा की गयी थी। 
इस आंदोलन का नारा  था  "क्या है इस जंगल का उपकार , मिटटी , पानी और बयार , ज़िंदा रहने के आधार "
इस आंदोलन को शिखर पर पहुंचने का कार्य सुंदरलाल बहुगुणा ने लिया। 


झपटो  छीनो आंदोलन 


रेणी , लाता , तोलमा  गाँव की जनता ने वनो पर परम्परागत हक़ बहाल करने तथा नंदा देवी राष्ट्रिय पार्क का प्रबंध ग्रामीणों को सौंपने की मांग को लेकर 21 जून 1998  को लाता  गाँव में धरना प्रारम्भ किया और लोग अपने पालतू जानवरो के साथ नंदादेवो राष्ट्रीय उध्यान में घुस गए इसीलिए इस आंदोलन का नाम झपटो  छीनो रखा गया। 



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